tag:blogger.com,1999:blog-332234042296215842024-03-13T21:09:21.021+05:30हिन्दु मंत्रहे एक महत्वपूर्ण ब्लाग आहे. जे आपल्याला हिन्दू मंत्र उपलब्ध करून देईल. आपल्याला काही अजून मंत्र हवे असतील तर मला लिहणे.उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-84613478451194090672013-08-10T21:42:00.000+05:302013-08-10T21:42:09.025+05:30गायत्री मंत्र का वर्णं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="MR" style="color: blue; font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">ॐ भूर्भुवः स्वः</span><span style="color: blue; font-size: 10.0pt;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="color: blue; font-size: 10.0pt;"><br>
</span><span lang="MR" style="color: blue; font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">तत्सवितुर्वरेण्यं</span><span style="color: blue; font-size: 10.0pt;"><br>
</span><span lang="MR" style="color: blue; font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">भर्गो देवस्यः धीमहि</span><span style="color: blue; font-size: 10.0pt;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="MR" style="color: blue; font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">धियो
यो नः प्रचोदयात्</span></div>
</div><a href="https://hindu-mantra.blogspot.com/2013/08/blog-post.html#more">और जानिएं »</a>उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-13567665096775097402009-12-31T12:00:00.001+05:302012-05-05T16:17:31.406+05:30संकष्टनाशनंगणेशस्तोत्रम्<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div align="justify">श्री गणेशाय नम:। नारद उवाच। प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। भक्तावासंस्मरेन्नित्यमायु: कामार्थसिद्धये॥१॥ प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिग्डाक्षं गजवक्र चतुर्थकम्॥२॥ लम्बोदरं पश्र्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विन्हराजं च धूम्रवर्ण तथाऽष्टमम्॥३॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥ द्वादशैतानि नामानि त्रिसंन्ध्यं य: पठेन्नर:। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥ विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥ जपेग्दगणपतिस्तोत्रं षड् भिर्मासै: फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥ अष्टाभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्र्च लिखित्वा य: समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत्सर्वां गणेशस्य प्रसादत:॥८॥</div><blockquote></blockquote><div align="center">इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं नाम गणेशस्तोतं संपुर्णम्।</div></div>उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-85934660057351141702009-12-30T12:00:00.000+05:302009-02-23T16:30:44.398+05:30महालक्ष्म्यष्टकम्<div align="justify">श्री गणेशाय नम:। इन्द्र उवाच। नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शख्डचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥ नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥ सर्वज्ञे सर्व दुष्ट भयंकरि। सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥ सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी। मन्त्रमूर्ते महादेवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥ आद्यन्तरहितेदेवि आद्यशक्ति महेश्वरि। योगजे योगसंभूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥५॥ स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥ पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥७॥ श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥ महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं य: पठेभ्दक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धिमवान्पोति राज्यं प्रान्पोति सर्वदा॥९॥ एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥१०॥ त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥११॥ </div><blockquote></blockquote><div align="center">इतीन्द्रकृत: श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तव: सम्पूर्ण:।</div>उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-24157497250034305052009-12-29T12:00:00.000+05:302009-02-23T16:31:53.108+05:30नवग्रहस्तोत्रंम्<div align="justify">श्री गणेशाय नम:॥ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥१॥ दधिशख्डतुषाराभं क्षीरोदार्णावसंभवम्। नमामि शशिनं सौम्यं शंभोर्मुकुटभूषणम्॥२॥ धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कीन्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं च मड्गलं प्रणमाम्यहम्॥३॥ प्रियड्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥ देवानां च ऋषीणां च गुरूं काञ्चसंनिभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं बृहस्पतिम्॥५॥ हिमकुन्दमृणलाभं दैत्यानां परमं गुरूम्। सर्वशास्त्रप्रवतारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥ नीलाज्जनसमाभासं रविपुत्र यमाग्रजम्। छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्र्चरम्॥७॥ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहम्॥८॥ फ्लाशपुष्पसंकाशं तारकांग्रहमस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥ इतिव्यासमुखो द्रीतं य: त्सुसमाहित:। दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति॥१०॥ नरनारी नृपाणां च भवेद् दु:स्वप्ननाशनम्। ऐश्र्वर्य मतुलं तेषामारोग्य पुष्टिवर्धनम्॥११॥ ग्रहनक्षत्रजा: पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवा:। ता: सर्वा: प्रशमं शान्ति व्यासो ब्रूते न संशय:॥१२॥<br /><br /></div><span class=""><blockquote><span class=""></span></blockquote><div align="center">इति</span> श्रीव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ।<br /></div><blockquote></blockquote>उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-30504107562300632052009-12-28T12:00:00.000+05:302009-02-23T16:33:07.308+05:30नवग्रहपिडाहरनस्तोत्रम्<div align="justify">श्री गणेशाय नम:॥ ग्रहाणामादिरादित्यो लोकराक्षणकारक:। विषमस्थानसंभूतां पीडां हरतु मे रवि:॥१॥ रोहिणीश: सुधामूर्ति सुधागात्र: सुधाशन:। विषमस्थानसंभूतां पीडां हरतु मे विधु:॥२॥ भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत्सदा। वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुज:॥३॥ उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:। सूर्यप्रियकरो विद्वान्पीडां हरतु मे बुध:॥४॥ देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:। अनेकशिष्यसंपूर्ण: पीडां हरतु मे गुरू:॥५॥ दैत्यमंत्री गुरूस्तेषां प्राणदश्र्च महामति:। प्रभुस्ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे श्रृगु:॥६॥ सुर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:। दीर्घचारा: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:॥७॥ महाशिरा महावक्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्र्चोर्ध्वकेशश्र्च पीडां हरतु मे शिखी॥८॥ अनेकरूपेवर्णैश्र्च शतशेऽथ सहस्त्रश:। उत्पादरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम:॥९॥<br /><br /></div><blockquote></blockquote><div align="center">इति नवग्रहपीडांहरणस्तोत्रंम् ।</div>उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-74531167273287306752009-12-27T12:00:00.000+05:302012-12-09T16:39:33.551+05:30अथ श्रीदुर्गासप्तश्र्लोकी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div align="justify">
श्रीगणेशाय नम:। श्रीशिव उवाच॥ देवि त्वं भक्तिसुलभे सर्वकार्यविधायिनि॥ कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नत:॥१॥ देव्युवाच॥ श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्॥ मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तोत्रं: प्रकाश्यते॥२॥ ॐ अस्य श्रीदुर्गा सप्तश्र्लोकी स्तोत्रमंत्रस्य नारायण ऋषि:॥ अनुष्टुप् छन्द:॥ श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवता:। श्रीदुर्गासप्तश्र्लोकीपाठे विनियोग:॥ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा॥ बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि॥ दारिद्रय दु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके॥ शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥३॥ शरणागत दीनार्त्त परित्राण परायणे॥ सर्वस्यार्त्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥४॥ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते॥ भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥५॥ रोगान शेषान पहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्सकलान भीष्टान्॥ त्वामाश्रितानां न विनन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयांति॥६॥ सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याऽखिलेश्र्वरि॥ एवमेव त्वया कार्यम स्मद्वैरिविनाशनम्॥७॥ य एतत्परमं गुह्यं सर्वरक्षा विशारदम्॥ देव्यासंभाषितं स्तोत्रं सदा साम्राज्यदायकम्॥८॥ श्रृणुयाद्वा पठेद्वापि पाठ येद्वापि यत्नत:॥ परिवारयुतो भूत्वा त्रैलोक्यविजयी भवेत्॥९॥</div>
<blockquote>
</blockquote>
<div align="center">
<br />
इति दुर्गासप्तश्र्लोकी समाप्त</div>
<div align="center">
॥ शुभमस्तु॥</div>
</div>
उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-33223404229621584.post-55701940434218988912009-12-26T12:00:00.000+05:302009-02-23T22:15:15.025+05:30श्रीहनुमानचालीसा<div align="center">श्री हनूमते नम:<br />श्रीहनुमानचालीसा<br />दोहा<br /></div><span class=""><blockquote><span class=""></span></blockquote><div align="justify">श्रीगुरू</span> चरन सरोज रज</div><div align="justify">निज मनु मुकुरू सुधारी।<br />बरनऊँ रघुबर बिमल जसु</div><div align="justify"><span class=""></span>जो दायकु फल चारी॥<br />बुद्धिहीन तनु जानिके,</div><div align="justify">सुमिरौं पवन-कुमार।<br />बल बुधि बिद्या देहु मोहिं,</div><div align="justify">हरुहु कलेस बिकार॥<br /></div><blockquote></blockquote><div align="center">चौपाई<br /></div><blockquote></blockquote><div align="justify">जय जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।<br />जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥<br />राम दूत अतुलित बल धामा।<br />अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥<br />महाबीर बिक्रम बजरंगी।<br />कुमति निवार सुमति के संगी॥<br />कंचन बरन बिराज सुबेसा।<br />कानन कुंडल कुंचित केसा॥<br />हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।<br />कॉंधे मूँज जनेऊ साजै॥<br />संकर सुवन केसरीनंदन।<br />तेज प्रताप महा जग बंदन॥<br />बिद्यावान गुनी अति चातुर।<br />राम काज करिबे को आतुर॥<br />प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।<br />राम लखन सीता मन बसिया॥<br />सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।<br />भीम रूप धरि असुर सँहारे॥<br />लाय सजीवन लखन जियाये।<br />श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥<br />रघुपति कीन्ही बहुत बडाई।<br />तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥<br />सहस बदन तुम्हारो जस गावैं।<br />अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥<br />सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।<br />नाराद सारद सहित अहिसा॥<br />जम कुबेर दिगपाल जहॉं ते।<br />कबि कोबिद कहि सके कहॉं ते॥<br />तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।<br />राम मिलाय राज पद दीन्हा॥<br />तुम्हारो मन्त्र बिभीषन माना।<br />लंकेस्वर भए सब जग जाना॥<br />जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।<br />लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥<br />प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।<br />जलधि लॉंघि गये अचरज नाहीं॥<br />दुर्गम काज जगत के जेते।<br />सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥<br />राम दुआरे तुम रखवारे।<br />होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥<br />सब सुख लहै तुम्हारी सरना।<br />तुम रच्छक काहू को डर ना॥<br />आपन तेज सम्हारो आपै।<br />तीनों लोक हॉंक तें कॉंपै॥<br />भूत पिसाच निकट नहिं आवै।<br />महाबीर जब नाम सुनावै॥<br />नासै रोग हरै सब पीरा।<br />जपत निरंतर हनुमत बीरा॥<br />संकट तें हनुमान छुडावै।<br />मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥<br />सब पर राम तपस्वी राजा।<br />तिन के काज सकल तुम साजा॥<br />और मनोरथ जो कोई लावै।<br />सोई अमित जीवन पावै॥<br />चारों जुग परताप तुम्हारा।<br />है परसिद्ध जगत उजियारा॥<br />साधु संत के तुम रखवारे।<br />असुर निकंदन राम दुलारे॥<br />अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।<br />अस बर दीन जानकी माता॥<br />राम रसायन तुम्हारे पासा।<br />सदा रहो रघुपति के दासा॥<br />तुम्हारे भजन राम को पावै।<br />जनम जनम के दुख बिसरावै॥<br />अंत काल रघुबर पुर जाई।<br />जहॉं जन्म हरि-भक्त कहाई॥<br />और देवता चित्त न धरई।<br />हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥<br />संकट कटै मिटै सब पीरा।<br />जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥<br />जै जै जै हनुमान गोसाईं।<br />कृपा करहु गुरू देव की नाईं॥<br />जो सत बार पाठ कर कोई।<br />छूटही बंदि महा सुख होई॥<br />जो यह पढै हनुमान चलीसा।<br />होय सिद्धि साखी गौरीसा॥<br />तुलसीदास सदा हरि चेरा।<br />कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥<br /></div><blockquote></blockquote><div align="center">दोहा<br /></div><blockquote></blockquote><div align="justify">पवनतनय संकट हरन,<br />मंगल मूरति रूप।<br />राम लखन सीता सहित,<br />हृदय बसहु सुर भूप॥<br /></div><blockquote></blockquote><div align="center">॥इति॥</div>उदयन पी.के. तुळजापूरकर<br>एक भारतीय <br>Udayan P.K. Tuljapurkar<br>Indianhttp://www.blogger.com/profile/04799959080257261642noreply@blogger.com0